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Adidas And Puma Success Story In Hindi | एडिडास और प्यूमा


BY  ON may

Adidas And Puma Success Story | एडिडास और प्यूमा :-

Adidas And Puma Success Story In Hindi
Adidas And Puma Success Story In Hindi

वो कहते हैं ना कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता | काम तो सिर्फ काम होता हैं, जिसे अगर लगन और मेहनत से किया जाये तो इंसान क्या कुछ नहीं कर सकता |
इसी का जीता जगता सबूत हैं ए़डिडास और प्यूमा ब्रांड, जो आज अपनी प्रोडक्ट क्वालिटी और कम्फर्ट के लिए लोगो की पहली पसंद बना हुआ हैं | आपको ये बात जान के हैरानी होगी की जिस ए़डिडास या फिर प्यूमा ब्रांड के प्रोडक्ट के ऊपर आप आंख बंद कर के भी विश्वास कर लेते है | उसकी शुरुआत एक छोटी सी लॉंड्री से हुई थी और इसकी स्थापना जर्मनी के एडॉल्फ डेसलर और रूडोल्फ डेसलर ने की थी | जिनका निक नेम एड़ी और रूडी था |

दरसल एड़ी और रूडी दोनों ही सगे भाई थे, और उनके पिता जर्मनी के एक छोटे से शू फैक्ट्री में जूते सिलने का काम करते थे, और उनकी माँ भी थोड़े एक्स्ट्रा पैसों के लिए एक छोटे से कमरे में लौंड्री चलाती थी | एड़ी और रूडी अपनी शुरुवाती पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने पिता के साथ ही फैक्ट्री में काम करने लगे और फिर कुछ दिनों बाद ही विश्वयुद्ध शुरू हो गया, जिसमे सभी युवाओं को शामिल होना जरुरी होता था | और इसी लिए एड़ी और रूडी दोनों को बुलाया गया | कुछ सालों तक चले वर्ल्ड वार ख़त्म होने के बाद दोनों सुरक्षित वापस घर आ गए |
दोनों भाइयों को खेल में काफी दिलचस्पी थी और वे दोनों बेहतरीन खिलाडी भी थे | लेकिन जब भी वे अपने पिता द्वारा सिले हुए जूते पहनते तो वे जूते उन्हें बिलकुल भी कम्फर्टेबल फील नहीं होते | वे सोचते की ऐसे जूते पहनकर कोई खेल कैसे सकता हैं ? और इसी लिए उन्होंने अपने और अपने दोस्तों के लिए जुते बनाने शुरू किये, और जब उन्होंने देखा की उनके द्वारा बनाये गए जूते लोगों को बहुत पसंद आ रहे है तो उन्होंने अपने माँ के लौंड्री में ही जूते बनाने का फुल टाइम बिजनस शुरू कर दिया |
धीरे धीरे उनके द्वारा बनाये गए जूते लोगों तक पहुँचने शुरू हो गए, और फिर 1924 में दोनों ने मिलकर डास्लर ब्रदर्स नाम का एक कंपनी खोला | लेकिन यहाँ भी उन्हें बहुत सारी समस्या झेलनी पड़ी, क्योंकि उन दिनों ज्यादा बिजली उपलब्ध नहीं होता था और इसी लिए उन्हे साईकल के पैडल का प्रयोग करना पड़ता था |
लेकिन दोस्तों अगर इरादे पक्के हो तो कोई भी राह नामुमकिन नहीं होती |
और यही हुआ दोनो भाईयों के साथ भी धीरे धीरे उनका बिजनस बढ़ता चला गया | लेकिन उनके इस बिजनस को असली सफलता 12 साल बाद 1936 के समर ओलम्पिक में तब मिली, जब कैसे भी कर के अडोल्फ़ डेसलर ने उस समय के स्टार इस्प्रिन्टर “ओवेन्स” को अपना जूता पहनाकर खेलने को राजी कर लिया |  उस ओलामिक में ओवेन्स ने कुल चार गोल्ड मेडल्स भी जीते, इसके बाद से ही पूरी दुनिया के खिलाड़ियों के बीच डास्लर ब्रदर्स के जूते प्रसिद्ध होते चले गए | और फिर 1948 तक उनकी कंपनी हर साल 2 लाख जूतों की बिक्री करने लगी |
लेकिन इसी बीच दोनों भाइयो में भी राजनैतिक कारणों से मतभेद हो गए, और फिर उन्होंने अलग होने का फैसला किया | जिसके बाद ए़़डोल्फ ने अपनी एक नयी कम्पनी बनायीं , और उसका नाम अपने निकनेम और सर नेम को को मिलाकर Adidas रखा, और दूसरी तरफ भाई रूडोल्फ ने भी रुडा नाम की एक कंपनी खोली, जिसका नाम उन्होंने कुछ ही समय बाद बदलकर प्यूमा कर दिया |
फिर दोनों को बिजनस चलाने का तो ढंग तो पहले से ही पता था, दोनों बढ़ते चले गए, और फिर जूतों के अलावा भी दोनों कम्पनिया बैग, शर्ट, घड़ियां, चश्मे और खेल से सम्बंधित बहुत सारे वस्तुओ उत्पादन करने लगी , और आज के समय में दोनों ही कम्पनिया विश्व की सबसे बड़ी Sportswear कंपनीयों में गिनी जाती है |
किसी ने भी यह नहीं सोचा था की जूते सिलने वाले के दो लड़के आज अपनी काबिलियत के दम पर हमें यह सोचने को मजबूर कर देंगे की अगर इरादे पक्के हो तो कोई भी राह नामुमकिन नहीं होती |
दोस्तों मुझे उम्मीद है की Adidas और Puma ब्रांड की यह स्टोरी आपके लिए प्रेरणा का श्रोत बनेगी और जज्बा देगी, कुछ कर दिखाने का… नई ऊचाइंयों को छूने का |

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